अंगुलियाँ शरीर का एक मूल्यवान अंग है। अँगुलियों से ही मनुष्य अपने अधिकतर काम करता है।
प्रागैतिहासिक काल में अँगुलियों की विभिन्न रचनाओं या कहें कि मुद्राओं से मनुष्य ने सूचनाओं का आदान प्रदान किया। आज भी
मूक-बधिर व्यक्तिओं को अपनी बात कहने के लिये हस्त संकेत ही मुख्य माध्यम है।
हमारे शास्त्रीय नृत्यों में हस्त-मुद्राओं का बहुत महत्व है। धार्मिक कार्योंमें, जप,
जाप, ध्यान
आदि में भी हाथों की मुद्रायें महत्वपूर्ण होती है। शरीर को स्वस्थ रखने में अँगुलियोंकी
बड़ी भूमिका है क्योंकि शरीर के हर भाग की तंत्रिकाओं का सम्बन्ध अँगुलियों से हैं। इसी ज्ञान का उपयोग
एक्युप्रेशर चिकित्सा में भी किया गया है।
शास्त्रों
के अनुसार यह सृष्टि पांच तत्वों से बनीं है। वे तत्व हैं :- अग्नितत्व, वायुतत्व, पृथ्वी
तत्व, जलतत्व
और आकाशतत्व। यह
मानव शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे। अर्थात् यही पांच तत्व
मनुष्य के शरीर के अन्दर भी हैं।
हमारी
सृष्टि का अग्नि तत्व है सूर्य, सूर्य से प्राप्त ऊर्जा या उष्णता।
वायुतत्व
अर्थात हवा या हवा के ज्ञात-अज्ञात घटक और हवा की प्राण शक्ति।
पृथ्वी
तत्व अर्थात मिटटी और जमीन से पैदा होनेवाली वनस्पति और पृथ्वी की प्राणशक्ति।
जलतत्व
याने सागर, नदियाँ
और भूगर्भीय जल और जल की प्राणशक्ति, और
आकाश
तत्व अर्थात आकाश या रिक्तता, खालीपन या खाली स्थान और रिक्त स्थान की
प्राणशक्ति।
यही पांच तत्व मानव देह में हैं।
-सृष्टि
में जैसी उष्णता है वैसी ही मनुष्य के शरीर में भी है। हमारे शरीर का तापमान ९७ या ९८ अंश
सेल्सियस है अर्थात हम में अग्नितत्व है।
-हम
सांस लेते हैं, फेफड़ों में हवा रहती है अर्थात वायुतत्व का हम उपयोग करते है।
-भोजन
के द्वारा
हम वनस्पति और अन्य खनिजों का उपयोग करते हैं। अर्थात हमारा शरीर
पृथ्वी तत्व से बना है।
-शरीर
की नसों में खून प्रवाहित होता रहता है। पीने के लिए हम पानी
प्रयोग में लाते हैं हमारे शरीर में ७५%
पानी है। अतः
हम में जलतत्व है।
-हमारे
शरीर में खाली स्थान है जैसे फेफड़ों में, पेट में, नाक में ये सभी आकाश तत्व की उपस्थिति
का संकेत है।
ये
पाँच तत्व जब हमारे शरीर में कम या अधिक हो जाते हैं तब शरीर रोगी हो जाता है। जब इनका प्रमाण सम हो
जाता है तब शरीर स्वस्थ हो जाता है। इसका
अर्थ यह हुआ कि शरीर को निरोगी रखने के लिये ये पाँचों तत्व हमारे शरीर में उपयुक्त
प्रमाण में रहना चाहिये। हस्त मुद्रा चिकित्सा विज्ञान के द्वारा
इन पाँचों तत्वों का नियंत्रण किया जाता है। एक से डेढ हजार साल पहले यह चिकित्सा पद्धति
बहुत विकसित थी। मुनियों ने भी ध्यान करते समय विभिन्न मुद्राओं का अवलम्बन
किया। मुद्राओं का
ध्यान धारणा के साथ मेल ध्यान के साथ साथ आरोग्य और मन के संतुलन में भी उपयोगी
सिद्ध हुआ।
हस्त मुद्रा चिकित्सा पद्धति अत्यंत सरल
है। कोई
भी व्यक्ति इसे सरलता से और सहजता से कर सकता है। हाथों की अंगुलियाँ एक विशिष्ट
प्रकार से जोड़ने से और स्पर्श या दबाव देने पर मुद्रा बन जाती हैं। इस तरह अलग अलग
पद्धति से जोड़ने पर अंगुलियों की विभिन्न मुद्राएँ बन सकती हैं। प्रत्येक हाथ की पांच
अंगुलियाँ उपरोक्त पांच तत्वों का या कहें कि पंच-महाभूतों का प्रतिनिधित्व करती
हैं। अतः
हम कह सकते हैं कि हमारा आरोग्य हमारे हाथों में ही है।
इस हस्त मुद्रा चिकित्सा विज्ञान को
समझने का हमारा उद्देश
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की सरलता से रक्षा करना है।
-हाथ
का अंगूठा अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है,
-पास
की तर्जनी वायुतत्व का,
-बीच
की अंगुली या मध्यमा आकाश तत्व का,
-उसके बाद वाली अनामिका पृथ्वी तत्व का और
-उसके बाद वाली अनामिका पृथ्वी तत्व का और
-सबसे
छोटी अंगुली अर्थात कनिष्ठा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करती है।
हस्त मुद्रा चिकित्सा विज्ञान का अभ्यास
कोई भी स्त्री या पुरुष, किसी भी उम्र में कर सकता है। रोगी व्यक्ति रोग को दूर करने में या
उसकी तीव्रता कम करने में कर सकता है। जब कि स्वस्थ व्यक्ति इसके अभ्यास से अपना
स्वास्थ्य बनाए रख सकता है। संक्षेप में हस्त मुद्रा चिकित्सा
पद्धति बिना मूल्य और सभी के लिये सुलभ चिकित्सा पद्धति है। अब हमें देखना होगा कि इसका अभ्यास
कितने समय के लिये किया जाय, कम से कम कितनी देर और अधिकतम कितने समय
तक किया जाय और कब किया जाय।
हस्तमुद्रा एक ही समय दोनों हाथों से करना
चाहिये। मुद्रा
अभ्यास पैंतालीस मिनिट तक करने से शरीर के मूल तत्वों में बदलाव आने लगता है। इसलिए हस्त मुद्रा सर्व-साधारण रूप में ४५ मिनिट तक करना चाहिये। अभ्यास दस
मिनिट से शुरू कर अल्पावधि में बढाते जाना चाहिये। यह अभ्यास अधिक से अधिक एक घंटे तक करना चाहिये। कुछ क्षणों तक किया हुआ अभ्यास भी उस व्यक्ति के शरीर में ऊर्जा स्पंदनों या लहरों को नियंत्रित करता है। अभ्यासक के ऊर्जा चक्रों में और स्नायुतंत्र में अभ्यास का परिणाम होता है। कुछ मुद्राओं का परिणाम या कहें कि अनुभव तत्काल होता है जब कि कुछ मुद्राओं का परिणाम कुछ समय बाद ही नजर आता है।
हमारे समाज में सभी में नकारात्मक मनोवृत्ति होती है। नब्बे प्रतिशत लोग कोई नई बात स्वीकार
नहीं करते या आजमाने के लिये तैयार नहीं होते। फिर वह अगर आसान और
बिना मूल्य हो तो उसके प्रभावी
होने के बारे में शंका करतेहैं। जितनी महँगी चिकित्सा
उतनी ही अधिक असरदार ऐसी गलतफहमी लोगों में साधारण
रूप से रहती है। बुद्धिवादी लोग पुरानी चीजों और ज्ञान के प्रति अत्यंत निरादर, संकुचित और विरोधी दृष्टिकोण रखते हैं। लेकिन पश्चिमी देशों में उस ज्ञान के प्रति रुझान देखने पर ही अपनी धारणाएं बदलते हैं। योगशास्त्र की
मुद्रायें कठिन मानकर उनसे दूर रहने की कोशिश करना उचित नहीं है और साथ ही उन्हें बहुत सरल और मामूली मानकर उनका तिरस्कार
करना भी ठीक नहीं है। हस्त मुद्रा चिकित्सा
विज्ञान सुखी और
समृद्ध जीवन का राजमार्ग है। प्रकृति के नियम समझ कर उनका पूर्ण आचरण करने जैसी सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा और कोई नहीं है। मानव शरीर अनेक
रहस्योंका भण्डार है। हस्त मुद्रा विज्ञान भारतीय ऋषि-मुनियों द्वारा संसार को प्रदत्त अनमोल धरोहर है। हमें इसे सम्हाल कर ही नहीं रखना है बल्कि उसे पूर्ण रूप से उपयोग में लाकर आगे बढ़ाना चाहिये। अतः स्वयं भी सीखें और अन्य लोगों को भी सिखाएँ।
अतः जो लोग हस्त मुद्रा चिकित्सा करना
चाहते है उन्हें इस पर श्रद्धा और सब्र रखना ही होगा। जैसा कि शिरडी के साईंमहाराज का भी बोध वाक्य है “श्रद्धा
और सबूरी”। अतः
श्रद्धा और सब्र के साथ
हस्त मुद्राओं के द्वारा निरामय जीवन का आनंद लें। सिर्फ और सिर्फ अनुभव
के द्वारा ही आप इस हस्त
मुद्रा चिकित्सा पद्धति का
परीक्षण कर सकते हैं। समय की कमी मुद्राभ्यास से दूर रहने का कारण न बने। अतः आप टहलने जाते समय, टी. वी. के कार्यक्रम देखते समय, खेल देखते समय, प्रवास करते समय, ध्यान करते समय, प्राणायाम करते समय मुद्राभ्यास कर सकते हैं।
(क्रमश:)
(क्रमश:)
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